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शनिवार, 7 मार्च 2015

हरियाणवी गीत (हास्य व्यंग्य ) म्हारे गाम की होळी

 बुरा णा मान्नो होळी सः
खेल्यां खेल्यां मैं तो पक गी ,इन शहरां की होळी तः
म्हारे गाम की बात निराळी,ये भी कोई होळी सः
रंग णा चोक्खे इन शहरां के ,केमीकल की झिक झिक सः
म्हारे गाम का गोबर कीचड, ही सबते ओरगेनिक सः
ह्याँ होळी में डरें छोरियाँ,खुली हवा णा पावैं सः
आँख मार दी किसी छोरे ने ,खून णा  इनमे पावे सः
म्हारे गाम के बिगड़े छोरे ,यूँ काब्बू में आवें सः
तोड़ के गोड्डे हाथ मा देदे , छोरी लट्ठ चलावें सः
कई भेंसा का दूध गटक कर ,ऐसा रंग जमावें सः
पूंछ दबाकर सारे छोरे ,खेत्तां में छुप जावैं सः
हर होळी में सारी लुगाई,मर्दों को हडकावें सः
सभी  लिकाड़ें मन की अपणी नू  सोट्टे  बरसावें सः
फागण फागण खेल खाल के, दिन भर जब थक जावैं सः
घर मा आके सारे मर्दां,उनकी टांग  दबावें सः
खेल्यां खेल्यां मैं तो पक गई,इन शहरां की होळी तः

म्हारे गाम की बात निराळी,ये भी कोई होळी सः 
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