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रविवार, 11 मई 2014

माँ तेरी इन आँखों में क्यूँ दोरंगी तस्वीर दिखे--(ग़ज़ल )

माँ तेरी इन आँखों में क्यूँ दोरंगी तस्वीर दिखे
इक नदिया से मोती बहते दूजे से क्यूँ नीर दिखे

खुश रह ले तू इस जीवन में ऐसे क्यूँ हालात नहीं
गम को पीकर हँसती है तू पर बातों में पीर दिखे

बेटी अपनी सावित्री या सीता का क़िरदार अगर
दूजे  की बेटी में उनको फिर क्यूँ लैला हीर दिखे

भारत अपनी आजादी की जब दिखलाऐ शान यहाँ
आँखों पर पट्टी  तेरे क्यूँ पैरों में जंजीर दिखे

नारी को पूजा करते थे पहले जग के लोग सभी
क्यूँ मर्दों की नजरों में औरत अपनी ज़ागीर दिखे

जिस नारी को मिलता था इक देवी का सम्मान यहाँ
अब  सामाजिक दर्पण में उसकी झूठी तौक़ीर दिखे

बिसरा देते जो डाली को पतझड़ के आगाज़ बिना
मौसम कहता है फूलों में तहज़ीबी तासीर दिखे

इक-इक मजहब के खेमों में धज्जी-धज्जी जान बटी
भारत माता की सोचूँ तो गर्दिश में तकदीर दिखे

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शुक्रवार, 2 मई 2014

शादी की सेंतीस्वी सालगिरह पर -----

(शादी की सेंतीस्वी सालगिरह पर ) 
कौन कहता है 
नदी के दो छोर मिल नहीं सकते 
मिले तो थे उस रोज,
आज ही के दिन 
जब थामा था हमने इक दूजे का हाथ 
गंगा के उस पार की लहर तुम्हारी 
इस पार की मेरी 
ले आई हम दोनों को कितने करीब 
तुम्हारे विश्वास और मेरे समर्पण 
से बनी एक छोटी सी किश्ती
में ,धारा संग बह चले... 
कितना पूर्ण हुआ 
कितना बाकी ,किसे है परवाह गिनने की 
बस चले जा रहे हैं इक दूजे का संबल बने
जीवन सफ़र में.......
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