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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं (ग़ज़ल "राज")

रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं (ग़ज़ल "राज")
       
बहर ----रमल मुसम्मन सालिम
 रदीफ़ --हम देखते हैं 
काफिया-- इयाँ 

आज क्या-क्या जिंदगी के दरमियाँ हम देखते हैं 
जश्ने हशमत या मुसल्सल  पस्तियाँ हम देखते हैं 

खो गए हैं  ख़्वाब के वो सब जजीरे तीरगी में 
गर्दिशों  में डगमगाती कश्तियाँ हम देखते हैं 

ख़ुश्क हैं पत्ते यहाँ अब यास में डूबी फिजाएं 
आज शाखों से लटकती बिजलियाँ हम देखते हैं 

आबशारों का तरन्नुम गुम हुआ जाने कहाँ अब 
तिश्नगी में फड़फडाती मछलियाँ हम देखते हैं 

बह गए मिलकर सभी पुखराज गिर्दाबे अलम में
बस किनारों पर सिसकती सीपियाँ हम देखते हैं 

आज होठों की तबस्सुम खो गई जाने कहाँ पर 
सख्त चहरों पर सभी के तल्खियाँ  हम देखते हैं  

क्या ख़बर तेज़ाब की शीशी कहाँ किस हाथ में हो 
रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं 

राजतेरे  शह्र  पर ये छा  गई कैसी घटायें
हर कदम पे अब धुएं की चिमनियाँ हम देखते हैं 

                                     राजेश कुमारी "राज
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जश्न हशमत--- गौरव का उत्सव 
पस्तियाँ--- पराजय 
यास----- गम ,उदासी 
तीरगी------ अँधेरे 
आबशारों---- झरने 
तिश्नगी----- प्यास 
गिर्दाबे अलम------ गम के भंवर 
तल्खियाँ-----  उदासी ,चिंताएं

(दोस्तों एक महीने के लिए बाहर जा रही हूँ फिर मिलूंगी शुभ विदा )

रविवार, 21 जुलाई 2013

फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू

जीवन में हर रंग दिखाता ये  पल्लू 
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू 
 गर्मी  में  चेहरे का  पसीना  पौंछता   
सावन में छतरी बन जाता है पल्लू 

जब- तब शादी में गठबंधन करवाता  
दो जीवन को एक बनाता ये पल्लू 
झोली बन कर आखत अर्पण  करवाता   
फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू  

कभी कभी नव शिशु  का झूला बन जाता    
आँखों से तिनका चुन लेता  ये  पल्लू   
रोता  बालक  माँ  के पीछे जब दौड़े   
हाथो की ऊँगली बन जाता है  पल्लू 

सर ढके जग में संस्कारी कहलाता 
ढल गया तो   कहर बरपाता ये  पल्लू 
छन छन् छन् छन घर की कुंजी छनकाता 
आये आँसू  आँख पौंछता है पल्लू 

चाहत में प्रेमी का साहिल बन जाता 
झगड़े  में फंदा  बन जाता ये पल्लू 
भार उठाने सर की टिकड़ी भी बनता 
धोबिन का हंटर  बन जाता है पल्लू   

स्वदेशी प्राचीन संस्कृति का द्योतक 
पुरखों की थाती का मानक ये  पल्लू 
जाने अब दुनिया में कैसी हवा बही 
उड़ा ले गई मरी  सिरों से वो  पल्लू  

जीवन में हर रंग दिखाता ये  पल्लू 
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू 

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