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सोमवार, 6 मई 2013

(घनाक्षरी) प्रज्ञा पुंज


(घनाक्षरी)  प्रज्ञा  पुंज(1)
हिंदी भाषा के शिंगार  रस छंद अलंकार 
नव शब्द माल लेके गीत तो बनाइए 
 संधि प्रत्यय समास, हों मुहावरे भी ख़ास  
भाव रंगों  में डुबो के कविता  रचाइए 
गीत या निबन्ध हो नवल भाव  सुगंध हो 
साहित्य सरोवर में डुबकी  लगाइए 
विद्या वरदान मिले लेखनी को मान मिले 
अपनी राष्ट्र भाषा का मान तो बढाइए 
 (2) 
भाव गहन बढे जो ध्यान नदिया चढ़े जो 
लेखनी की नाव लेके पार कर जाइये 
ह्रदय में प्रकाश हो मुट्ठी भरा आकाश हो  
प्रज्ञा  पुंज अर्णव से  अलख जगाइये 
हो छंदों की बरसात भीगे मन पात- पात 
ज्ञान अमृत  बूँदे  पीके  प्यास बुझाइये 
नित  जिसकी छाँव हो असीमित प्रभाव हो    
 ऐसा  विद्या कल्पतरु घर  में उगाइए
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10 टिप्‍पणियां:

  1. नित जिसकी छाँव हो असीमित प्रभाव हो
    ऐसा विद्या कल्पतरु घर में उगाइए,,,

    वाह !!!बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,सुंदर प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: दीदार होता है,

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  2. बहुत सुन्दर! हिन्दी के प्रचार प्रसार की आज अत्यधिक आवश्यकता है। आपका साधुवाद!

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  3. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आपका आभार.

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  4. हिंदी के प्रति आपका प्रयास सराहनीय है।

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  5. पुकारिए जयकारे के साथ---जय हो हिंदी..

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति..बधाई राजेश जी इस कृति के लिए..

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