यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 22 मई 2013

मशीनी मानव !!


बस पांच मिनट का पड़ाव  
उस स्टेशन पर 
देख रही हूँ उस पार किस तरह 
वो  उस हथौड़े को 
अपने सर के ऊपर तक ले जाकर 
खटाक से वार कर रहा है
 उस लोहे पर जिसको 
चूड़ियों से भरे दो हाथ 
थाम रहे हैं दोनों और से 
कितना आत्म विशवास है 
उन दोनों को अपने उन हाथों पर 
लोहा इच्छित आकार 
लेता जा रहा है धीरे-धीरे
सोच रही हूँ क्या कोई फर्क है 
इस लोहे और उन दो इंसानों में 
निर्धनता के हथौड़े ने 
इनके जिस्म ,व् मस्तिष्क 
को भी तो ढाल दिया है एक सांचे में  
तभी तो हर वार इतना अचूक 
गति में कंही कोई त्रुटी  नहीं 
व्यवधान नहीं 
एक मशीनी कल पुर्जों की  तरह 
दुनिया से बेखबर अपने उद्यम में 
संलग्न हैं वे दोनों 
मशीनी मानव !!
**************************

सोमवार, 20 मई 2013

यूँ ही कभी-कभी सोचती हूँ


(1)
जहां कदमो के निशाँ बनते थे
वो माटी  रही इस शहर में
दोस्तों ,कहाँ से गुजरेंगे
कोई कैसे ढूँढेगा ?? 
(2)
वो दरक का दर्द क्या जाने
जिसने जिन्दगी में कभी आईना  नहीं देखा। 
हर शहर आसमाँ छूने की होड़ में है
जमीं खफ़ा हो गई तो क्या होगा ??
(३)
जानती हूँ हम नदी के दो किनारे हैं
 फिर भी आग उस पार जलती है
तो धुआं इस पार उठता है
 जाने क्यों??
( )
वक़्त भागता है तो पकड़ने के लिए
पीछे भागती हूँ वक़्त मिलता है तो खुद से भागती हूँ
उफ्फ कैसी विडंबना है बड़े मनमानी करने लगे हैं
आजकल ये मेरे अस्तबल के घोड़े !!!
( )
लगता है मकान 
मालिक बदल गया 
आजकल उन रोशनदानो में 
कबूतर दिखाई नहीं देते 


***************************************


मंगलवार, 14 मई 2013

मैं कैसे सोऊँ ??

मैं  कैसे सोऊँ ??
नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ 
 व्याकुल जग पंथ निहारता 
जब गर्भ नाल में  हुई पीड़ा  
रक्त माँ- माँ कह पुकारता 
मैं कैसे सोऊँ ?
जब  बिस्तर उसका हुआ गीला 
वो करवट करवट जागता 
मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर 
पय उदधि हिलौरे मारता 
मैं कैसे सोऊँ ?
मैं रोटी का कौर लिए फिरती 
वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता 
मैं  कलम किताब दूँ हाथों में  
वो आगे- आगे भागता 
मैं कैसे सोऊँ ?
जब देर सवेर घर में आता 
शंकित मन फन फुफकारता 
वो प्रश्न का उत्तर ना देकर 
 निष्पंद शून्य में ताकता 
मैं कैसे सोऊँ ?
मैं रात दिन उसकी राह तकूँ 
मन उसकी खबर  सिहारता 
 हर वक़्त मुझे है फिकर उसकी 
जब वो सरहद पर जागता 
मैं कैसे सोऊँ ?
जब अंश मेरा हो खतरे  में 
वक़्त खड़ा धिक्कारता 
होकर जख्मी ज्यों अरण्य सिंह  
अस्तित्व मेरा हुंकारता 
मैं  कैसे सोऊँ ??
***********************