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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

इन निगाहों को कोई मंजर दे


इन निगाहों को कोई मंजर दे 
मछलियों को नया समंदर दे 

शुष्क धरती  की प्यास बुझ जाए 
आज ऐसा सुकून अम्बर दे 

बांटनी है अगर तुझे किस्मत 
तू गरीबों में भी बराबर दे 

अक्स अपना तलाश करना है 
इन चिरागों में रौशनी भर दे 

नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की 
प्यार का बेमिसाल पत्थर दे 

गाँव  उसने अभी बसाया है  
तू  इतना बड़ा बवंडर दे 

जो फराखी विराव रखता हो 
इस जहाँ को नया पयम्बर दे 

आज तक जो खता हुई मुझ से 
माफ़ मेरी खता खुदा कर दे 

16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह आदरेया छोटी बहर में लिखी एक बहुत ही उम्दा लाजवाब ग़ज़ल ढेरों दाद कुबूल करें

    जवाब देंहटाएं
  2. नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की
    प्यार का बेमिसाल पत्थर दे

    गाँव उसने अभी बसाया है
    तू न इतना बड़ा बवंडर दे
    वाह ... बहुत खूब

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह क्या कहने ...राजेश जी
    बड़ी खूबसूरती के साथ पेश किया है गजल का हर एक शेर ...

    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html

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  5. बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

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  6. अक्स अपना तलाश करना है
    इन चिरागों में रौशनी भर दे

    सभी शेर बहुत ही शशक्त है ... अपनी अपनी बात प्रखरता से रखते हुवे ...

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  7. बेहतरीन पंक्तियाँ अभिव्यक्ति की

    जवाब देंहटाएं
  8. अक्स अपना तलाश करना है
    इन चिरागों में रौशनी भर दे

    नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की
    प्यार का बेमिसाल पत्थर दे

    गाँव उसने अभी बसाया है
    तू न इतना बड़ा बवंडर दे

    शानदार गज़ल के बेहतरीन शेर, वाह !!!!!!!!!!!

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  9. गाँव उसने अभी बसाया है
    तू न इतना बड़ा बवंडर दे

    कितनी महीन और नाजुक बात कह दी आपने !
    बेमिसाल..!

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  10. अक्स अपना तलाश करना है
    इन चिरागों में रौशनी भर दे बहुत बढ़िया

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  11. अपने अक्स की तलाश के साथ ही शुष्क धरती व गरीबों के हक़ की चाह, वाह !!! यही तो कवि-धर्म है. गज़ल के माध्यम में से की गई प्रार्थना को ईश्वर अवश्य पूर्ण करेंगे.

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