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रविवार, 16 दिसंबर 2012

हिम सौन्दर्य


अनुपम अद्दभुत कलाकृति है या द्रष्टि का छलावरण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं द्रग और अंतःकरण
त्रण-त्रण चैतन्य   चित्ताकर्षक रंगों का ज़खीरा
पहना सतरंगी वसन शिखर को कहाँ छुपा चितेरा
           शीर्ष पर बरसते हैं रजत,कभी स्वर्णिम रुपहले  कण                                  
  जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण 

          कहीं धूप की चुनरी पर ,बदरी का बूटा गहरा गहरा                                     
कहीं वधु ने घूंघट खोला  कहीं छुपाया रूप सुनहरा

किसने है ये जाल बनाया,कौन है बुनकर  विचक्षण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण 

             शीत ऋतू में  मुकुट पर चाँदी की छतरी का घेरा                                
             बिखरे बिखरे रुई के गोले  धुंध  में लिपटा सवेरा                                                               
             निश दिन भरता नव्य रूप छुप कर करता नयन हरण                                                
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण 
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14 टिप्‍पणियां:

  1. निश दिन भरता नव्य रूप छुप कर करता नयन हरण
    जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण
    उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

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  2. अनुओं सौंदर्य है ओर उतना ही लाजवाब शब्द संयोजन ...
    बहुत खूब ..

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  3. किसने है ये जाल बनाया,कौन है बुनकर विचक्षण
    जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण
    बहुत सुंदर रचना ....कई बार पढ़ी ....
    बधाई एवं शुभकामनायें ...राजेश जी ...

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  4. बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण..

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  5. शब्द शब्द सौंदर्य से भरा. सुन्दर रचना.

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  6. चित्ताकर्षक रज-रज रँग उकेरा

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  7. मनोरम दृश्य।
    कविता में छटा झलक रही है।

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  8. प्रकृति की छठा निराली है और उतने ही निराले ठंग से आपने उसे अपनी कविता में ढाला हैं।
    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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  9. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


    अनुपम अद्भुत कलाकृति है या दृष्टि का छलावरण
    जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं दृग और अंतःकरण
    त्रण-त्रण चैतन्य औ चित्ताकर्षक रंगों का ज़खीरा
    पहना सतरंगी वसन शिखर को कहाँ छुपा चितेरा

    आऽऽहा हाऽऽऽ हऽऽऽ !
    सुंदर भाव ! सुंदर शब्द !

    इतनी ख़ूबसूरत रचना !
    विलंब से पढ़ने का अवसर मिला ...
    भरपूर आनंद आ गया लेकिन !

    आदरणीया राजेश कुमारी जी
    कई बार आपकी काव्य-प्रतिभा चमत्कृत कर देती है ...
    :)
    आभार सुंदर रचना के लिए !


    हार्दिक मंगलकामनाएं …
    लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !

    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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