यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 24 अप्रैल 2011

shayeri

चाक जिगर सिलना है तो इस तरह से सिल 
कि कभी पुराने जख्मों को धागे का कोई छोर ना मिले !!

अब हमे तन्हाइयों से डर नहीं लगता 
खंडरों में रहकर हम पत्थरों कि जुबां समझने लगे !! 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें