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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार विरोधी ज्वाला

कहते हैं जो बात न तीर में तलवार में ,वो है कलम की धार में !इसी कलम को लेकर आज मैं भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में शामिल होती हूँ ! और नमन करती हूँ उस महान मानव को अन्ना हजारे जी को जिन्होंने अपने प्रयास से आम जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ जाग्रत किया !मेरी यह कविता हर उस मानव को समर्पित जो इस लड़ाई में खड़े हैं !!      
 जलाओ मिल कर दीप आंधी में 
ये ज्योतिर्मय ज्वाला घर घर में दहकनी चाहिए !
पारदर्शी हो चुकी है भ्रष्टाचार की गागर 
अब तो चटकनी  चाहिए !
हो जाओ एकमत लोक मत में 
ये हवा यूँ ही पनपनी चाहिए !
उग रहे जहरीले बीज वतन में 
ये फसल अब तो कुचलनी चाहिए !
फैल रही गिद्हो की पांखे बगल में 
अब तो सिमट्नी चाहिए !!
स्पंदन हीन माटी के बुतों में 
अब तो कोई नाडी फरकनी चाहिए!!    

5 टिप्‍पणियां:

  1. पारदर्शी हो चुकी है भ्रष्टाचार की गागर
    अब तो चटकनी चाहिए !
    हो जाओ एकमत लोक मत में
    ये हवा यूँ ही पनपनी चाहिए !
    उग रहे जहरीले बीज वतन में
    ये फसल अब तो कुचलनी चाहिए !

    बहुत सटीक पंक्तियाँ रची आपने..... अब तो बदलाव आना ही चाहिए....

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  2. बहुत बढ़िया!
    अब हिमालय से नई गंंगा निकलनी चाहिए!

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  3. राजेश कुमारी जी!
    आपने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में प्रेरक रचना पढ़ाने का जो सौभाग्य मुझे दिया उसके लिए साधुवाद!
    ==============================
    दो दोहे
    ====
    यदि मानों तो वृक्ष हैं, अति सुशील संतान।
    मूल्यों का हर हाल में, ये करते हैं मान॥
    ------+-------+--------+--------+-----+-----
    प्राय: अवगुण पूत के, करते सपने खाक़।
    किन्तु वृक्ष निज जनक की, करें न नीची नाक॥
    ================================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  4. आप ठीक कहती है
    अब ये आग कबी बुझनी नहीं चाहिए

    सुन्दर प्रस्तुति

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