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सोमवार, 16 अगस्त 2010

ye pahachaan adhoori hai

 तुम यहीं होते हो आसपास मगर न जाने क्यों
                            लगता है ये शाम अधूरी है !
तुम हँसते हो दिल खोलकर मगर न जाने क्यों
लगता है ये मुस्कान अधूरी है !
तुम कहते हो कुछ ओर ,आँखे बंया करती हैं कुछ ओर
जाने क्यों लगता है कोई बात अधूरी है !
रोज मिलते हो ,हाल बयां करते हो
मगर लगता है ये पहचान अधूरी है !
हम भी होते हैं तुम भी होते हो .मगर न जाने क्यों
लगता है जैसे जनम की दूरी है !!!

1 टिप्पणी:

  1. अच्छी प्रस्तुति,
    सर्वप्रथम आपका तहे दिल से शुक्रिया अपनी बहुमूल्य टिप्पणी और समय देने के लिए,
    साथ ही उत्साह वर्धन तथा ब्लॉग अनुगमन के आमंत्रण का भी बहुत-बहुत धन्यवाद !!

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