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बुधवार, 26 मई 2010

मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!

मन का दीप जलाती हूँ



मैं अन्यमनस्क मन मंथन कर


भव्य भाव सजाती हूँ


अन्तरंग अंचल की परिक्रमा कर


हिय को किल्लोल सिखाती हूँ


मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!



रक्त धमनियों का लालित्य


हरदयस्पंदन का उत्कर्ष


चिंतन मनन के बिंदु पर


व्यग्र व्याकुल चंचल मन


मैं एकाकी अनुरागी


अभिलाषाओं का हार बनाती हूँ


मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!



कोंधती दामिनी द्रग की बैरी


मेघों की झूठी गर्जना


कर्ण पटल को छु कर मेरे


पहुंचाती है वेदना


कुछ क्षण चुपके से चुराकर


मैं स्वप्नों की हाट लगाती हूँ


मैं अंतर्मुखी मन का दीप जलाती हूँ !!

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